(Mukhi Deepak Kathuria) www.bharatdarshannews.com
Bharat Darshan New Delhi News, 10 July 2024 : शताब्दियों पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। वही वेद व्यास जी, जिन्होंने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर चार वेदों के रूप में वर्गीकरण किया था। 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनीबद्ध करने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। व्यास जी के लिए प्रसिद्ध है- व्यासोच्छिष्ठम् जगत सर्वम् अर्थात ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि वेद व्यास जी का उच्छिष्ट या जूठन न हो। ऐसे महान गुरुदेव के ज्ञान-सूर्य की रश्मियों में जिन शिष्यों ने स्नान किया, वे अपने गुरुदेव का पूजन किए बिना न रह सके। अब प्रश्न था कि पूजन किस शुभ दिवस पर किया जाए। एक ऐसा दिन जिस पर सभी शिष्य सहमत हुए, वह था गुरु के अवतरण का मंगलमय दिवस। इसलिए उनके शिष्यों ने इसी पुण्यमयी दिवस को अपने गुरु के पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन-वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है।
इतिहास के सभी संतों, महापुरुषों और गुरुओं ने भी यही मत रखा है। संत दादू दयाल जी कहते हैं- जब मुझे श्री सद्गुरु मिले, तो उन्होंने मुझे ज्ञान-दीक्षा का प्रसाद दिया। दीक्षा के समय ही गुरुदेव ने मेरे मस्तक पर अपना हाथ रखा और मुझे वह अगम-अगाध ईश्वर दिखा दिया। संत पलटू साहिब जी कहते हैं- जिस शिष्य ने अपने सद्गुरु की कृपा से दिव्य प्रकाश का अनुभव कर लिया, समझो उसी की दीक्षा प्रमाणित है। जिसके सभी भीतरी पट यानी दिव्य दृष्टि खुल गई, उसी का ज्ञान पूर्ण है। संत कबीर जी भी अपनी वाणी में यही उद्घोष करते हैं कि सद्गुरु आदि नाम के दाता हैं। शिष्य में इस अव्यक्त नाम को प्रकट कर वे (आध्यात्मिक) हृदय में ही ईश्वर का दीदार करा देते हैं। ज्ञान-दीक्षा मिलने पर अंतर्जगत में कोटि-कोटि चाँद और सूरज का प्रकाश चमकने लगता है। उसकी तुलना में बाहरी जगत का देदीप्यमान सूरज और उसका प्रकाश भी कुछ नहीं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को श्री गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!!