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    आम चुनाव 2024 और लोक- तनाव : ग़ैर सैद्धांतिक राजनैतिक - दौर और मुद्दों रहित भाषण : लोकहित की अनदेखी करने वाले नेताओं की भाषा- भाषणों को जनसाधारण को अपनी बौद्धिकता से समझना होगा

    (Mukhi Deepak Kathuria) www.bharatdarshannews.com

    आम चुनाव 2024 और लोक- तनाव : ग़ैर सैद्धांतिक राजनैतिक - दौर और मुद्दों रहित भाषण : लोकहित की अनदेखी करने वाले नेताओं की भाषा- भाषणों को जनसाधारण को अपनी बौद्धिकता से समझना होगा

    पार्ट  2 : जन-जागृति के बिना कोई चुनाव - चुनाव नहीं मानसिक तनाव है

    Bharat Darshan Faridabad News, 11 May 2024 : इस  बार  2024 में देश  भर में  हो  रहे आम चुनाव जिनका  7 मई को तीसरा  चरण समाप्त हुआ  है | 8 मई  को The Indian Express में छपी रिपोर्ट जिसमें, ECI के मुताबिक रात्री 11.40 PM तक तीसरे फेज़ में 93 सीटों के लिए 64. 40 प्रतिशत  मतदान  संपन्न हुआ | तीसरे चरण में असम की 4, छत्तीसगढ़ की 7, गोआ की 2, गुजरात की 26, और  कर्नाटक की 14, बिहार की 5, मध्य प्रदेश की 9, महाराष्ट्र की 11, उत्तर प्रदेश की 10, वेस्ट बंगाल की 4 सीटों के लिये मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया | यह तो है लोकसभा चुनाव 2024 की तीसरे चरण की अपडेट |

    J-B-sharma-Sir-copyअब हम बात करते हैं अपने लेख के माध्यम से देश की राजनीति की | यह तो विदित है कि  आज  देश में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मार्गदर्शक  RSS है | दूसरे शब्दों में बीजेपी सरकार  संघ की विचारधारा के अनुकूल  ही काम कर रही है | यह भी सच है कि संध की विचारधारा  देश के संविधान से मेल नहीं खाती | हम अपने पाठको इस लेख के पहली कड़ी में बता चुके  हैं - जिन पुस्तकों की मदद से हम यह जानकारी साझा कर रहे हैं, उनके शीर्षक हैं :

    books-v'The RSS Roadmaps for the 21st century.  दूसरी Hindutva Rising Secular Claims, Communal Realities, और तीसरी किताब है, ' भारत में  सांप्रदायिकता इतिहास और अनुभव '| इनके अलावा भी जिन-जिन किताबों की मदद हम लेंगे उनके शीर्षक और अॉथरस् के बारे में  भी आप से जानकारी साझा करते रहेंगे |

    तो आइये समझते हैं, 'The RSS Roadmaps for the 21st Century के 5 अध्याय, "Rise Of "Hindutva के बारे में  इस किताब के लेखक ' सुनील अंबेकर '  क्या लिखते हैं?

    "Hindutva is a way life. It is ' Sanatan' in nature.

    Sanatan is a word used to explain certain values

    and life principles that are eternal, an accretion

    of wisdom that has held sway beyond the vagaries

    of time and tumult of historical events. This philosophy of life is pervasive, complete and humane. It is force of goodness and an idea of welfare for all". अर्थात  हिन्दुत्व एक जीवन शैली है| इसकी प्रकृति ' सनातन है | सनातन शब्द के  मायने -शाश्वत ,सदा, नित्य आदि के रूप में  किया जाता है। वहीं अंबेकर के अनुसार  सनातन शब्द - जीवन के ऐसे निश्चित मूल्यों एवं सिद्धांतों और  ऐतिहासिक घटनाओं में अनियमितता और कोलाहल की बुद्धिमत्ता के दम पर व्याख्या करने के लिए प्रयोग किया जाता है | यह जीवन दर्शन बहुत व्यापक, व मानवीयता से पूर्ण है|  यह अच्छाई - भलाई की उर्जा तथा सर्वजन हिताय है | यह ठीक है कि सुनील अंबेकर ने अपनी उपरोक्त  किताब में सनातन की व्याख्या पौराणिक ग्रंथो की सटीक शब्दावली के साथ की है| लेकिन यहां  बड़ा सवाल यह है क्या RSS सच में ही 'सनातन ' की उल्लेखित परिभाषा को आम आदमी के हितों  को ध्यान  में रखकर इसे व्यवहार में लाती है ? या फिर, RSS  के सामने केवल  हिन्दु ही मानव है और मानवता की परिभाषा भी हिन्दु के दायरे के आसपास ही चक्कर काट कर अपनी इतिश्री कर लेती है ? दूसरा सवाल यह है  'अगर सनातन जीवन शैली की जटिलता, आडंबर, और रूढ़िवादिता का अतीत में विरोध न हुआ होता तो  भारत में बौध,जैन, इस्लाम, सिख यहां तक की आर्यसमाज आदि धर्मों एवं संप्रदायों क्या जन्म होता  ? वहीं हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए,   प्रकृति का सनातन नियम निरंतर परिवर्तन की पुष्टि करता है| लिहाज़ा ' सनातन ' प्रकृति का अटल सिद्धांत है | जिसमें  गतिशीलता का अनुभव किया जाता  है | अब हम बात करते हैं हिन्दुत्व की | इसके बारे हमें लेखक  अचिन विनायक ने अपनी पुस्तक, 'Hindutva Rising Secular Claims, Communal Realities. में क्या लिखा है ? कथित लेखक के अनुसार : The closet English translation of the term ,' Hindutva ' would be ' Hinduness' . अब यहां हिन्दुत्व या हिन्दुनैस को गहराई से समझते हैं तो इसका उल्लेख हिन्दुइज़्म से इतर मिलता है | जिसे कुछ इस तरह से अपरिभाषित किया गया है : "भारत में एसी राजनीतिक विचारधारा जिसमें हिन्दु नायकवाद या नेतृव के साथ हिन्दुराष्ट्रवाद में आस्था तथा संस्कृतिक  औचित्य शामिल हो"| यह ठीक है, हिन्दुनैस या हिन्दुत्व की यह परिभाषा तुलनात्मक रूप से हिन्दुइज़्म की परिभाषा से ज़्यादा व्यापक हो, लेकिन साथ ही यह सवाल भी पैदा करती है कि ,' हिन्दु कौन है , ? दूसरा  हिन्दुत्व या हिन्दुनैस को गठित करने वाली  कौन सी  विशेषतायें हैं ?

    यहां इस संबंध में एक और महत्वपूर्ण पहलू सामने आता है। वह औपनिवेशिक दौर था जिस समय भारत में धार्मिक समुदायों को तेज़ी के साथ परिभाषित किया जाने लगा था| बड़ा सवाल यह भी है किसने इसको परिभाषित किया और फिर यह कैसे राजनीतिक रुचि का निश्चित मुद्दा बना?

    जारी ...

    जग भूषण शर्मा ( पत्रकार)