GOVT OF INDIA RNI NO. 6859/61
  • Contact
  • E-Paper
  • Magzine
  • Photo Galery
  • Login
Bharat Darshan Logo
Bharat Darshan Founder
Breaking News:

    POLITICS

    आम चुनाव 2024 और लोक- तनाव  : ग़ैर सैद्धांतिक राजनैतिक - दौर  और  मुद्दों  रहित  भाषण

    (Mukhi Deepak Kathuria) www.bharatdarshannews.com

    आम चुनाव 2024 और लोक- तनाव  : ग़ैर सैद्धांतिक राजनैतिक - दौर  और  मुद्दों  रहित  भाषण

    पार्ट  1

    Bharat Darshan News, 06 May 2024 : 2024 के आम चुनाव में जनसाधारण के मानस पटल पर  इस बार आसाधारण तनाव महसूस करना कोई ज़्यादा  मुश्किल बात  नहीं | कौन नहीं जानता कि 2014 के बाद देश की राजनीति में आमूलचूल  बदलाव लाने के प्रयास बड़ी तेज़ी से प्रयास  किये जा रहे हैं | धार्मिकता का राजनीतिकरण और राज्य के देवता को अवतरित करना, सांप्रदायिकता के कार्ड का खुला प्रयोग वर्तमान सत्तारुढ़  बी.जे.पी सरकार के प्रमुख मुद्दे कहे जाये तो शायद ग़लत न होगा |

    books-vThe RSS Roadmaps for the 21st century. This bookis written by Sunil Ambekar. 

    सुनील अंबेकर संध के सह प्रमुख प्रचारक हैं | वह अपनी  उपरोक्त  पुस्तक के परिचय में लिखते हैं, 2007 में  जब भारत अपनी आज़ादी के 60 साल पूरे कर रहा था | अंबेकर  सोचते हैं  कि 2047 में हमारे भारत की स्थिति कैसी होगी?

    इस साल हमारा देश औपनिवेशिक शासन से हासिल की आज़ादी की 100वीं वर्ष गांठ मना रहा होगा!  वह संध के सिद्धांतों के बारे में लिखते हैं कि संध का रूप डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार  के अनुभवों पर आधारित है |  हांलांकि डॉक्टर जी उनका उपनाम था |

    पहली बात - आंदोलन को स्थायित्व और लंबी उम्र प्रदान करने लिए हमें अपनों की दीर्ध आयु चाहिए|  साथ ही  हमें महान व्याक्तियों के आयुकाल से भी अधिक स्थायित्व पाने के लिए  कड़ी मेहनत करनी होगी |

    दूसरा हिन्दू समाज शताब्दियों से असंगठित तो रहा ही है साथ ही इसे चिर स्थाई हमलों का सामना करना पड़ा है। इसलिए हिन्दु समाज  के साधरण व्यक्तियों   में  विश्वास पैदा करने के लिये दशकों तक निरंतर मेहनत करनी  होगी ताकि वे जागे और निश्चयात्मक राष्ट्रवादी बन सके|

    वहीं डॉक्टर साहब तीसरी बात कहते हुए बताते हैं - इकलौते  बड़े और महान नेताओं के दम पर विस्तृत रूप से राष्ट्र -चरित्र का निर्माण असंभव है |

    इस लेख का शीर्षक यह बताने के लिये पर्याप्त है कि 2024 में हो रहे लोकसभा चुनाव, देश के मतदाताओं के लिये अनेक कारणों के चलते सहज नही हैं | 

    इस लेख के लेखक की कोशिश रहेगी - देश की राजनीति में होने वाले कुछ असहज और नागवार बदलाव को समझा जाये | जिसके लिए स्वभाविक रूप से हम कुछ प्रसिद्ध लेखकों, राजनैतिक विचारकों, यहां तक कि अपने समय में मंत्री रहे चुके लोगों द्वारा लिखी किताबों की मदद ले रहे हैं |

    सबसे पहले हम जिस किताब की सहायता ले रहे हैं वह हैं,

    "Hindutva Rising" 'Secular Claim, Communal Realities.' by Achin Vanaik.  

    ऑथर दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोसेसर रह चुके हैं और सोशल एकि्टविस्ट  के अलावा

    fellow-Transnational Institute Amsterdam.) से भी जुड़े रहे हैं  |

    लेखक ने अपनी  उक्त पुस्तक के पहले ही चैप्टर  जिसका शीर्षक है में लिखा है, 

    ' The Communalization of the Indian Polity From Independence to the 2014 Election.'

    यानि स्वतंत्रता से लेकर 2014 के चुनावों तक भारतीय राजव्यस्था का सांप्रदायिकरण |

    लेखक अध्याय की शुरूआत करते हुए लिखता है| आज देश में सांप्रदायिकता की काली छाया बढ़ती जा रही है। राष्ट्रवाद की आत्मा की लड़ाई में अनेक पदों पर निगरानी रखी जा रही है या कहें कि उनको दांव पर रख दिया है

    ( In the battle for the soul of Indian nationalism,  various positions have been staked out). 

    इस वैचारिक द्वंद में एक पक्ष का मानना है कि भारतीय राष्ट्रवाद का आधार धर्मनिरपेक्षता होना चाहिए | जबकि पहले पक्ष के लोगों  का मानना है कि भारतीय राष्ट्रवाद   निसंदेह  भारत के मौलिक  मनोविज्ञान और  संस्कृति सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए | विचारक व लेखक अचिन विनायक के अनुसार देश का राष्ट्रवाद कथित दो विचारधाराओं में  उलझ कर रह गया है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि बहुधर्मी भारत में सरकार या तो धार्मिक गतिविधियों  से सहबद्ध न हो  या सरकार का विभिन्न समुदायों के धार्मिक रुचि के मुद्दों में बिना भेद-भाव के तटस्थता से अपनी भूमिका निभाये |

    अब हम सांप्रदायिकता के पक्ष  को समझ ने के लिये जिस  किताब की हम मदद ले रहे हैं, वह जनाब, भारत सरकार से 1993 में "राष्ट्रीय सांप्रदायिकता सद्भभावना पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं "

    उनका नाम है असगर अली इंजीनियर |

    पुस्तकें का शीर्षक है, " भारत में सांप्रदायिकता - इतिहास और अनुभव " |

    लेखक के अनुसार सांप्रदायिकता  एक जटिल प्रक्रिया है| इसे समझने के लिए केवल समसामयिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण ही पर्याप्त  नहीं होते| अर्थात   सांप्रदायिकता को  टूकडों में नहीं  समझा जा सकता| इसे परी तरह समझने के लिए  खुला दृष्टि कोण चाहिए | सांप्रदायिक शक्तियां अपने कारनामों को सही ठहराने या कहें कि उन्हें वैधता हासिल कराने के लिये जड़ें मध्यकाल में ढूंढती हैं |

    जारी. ......