(Mukhi Deepak Kathuria) www.bharatdarshannews.com
Bharat Darshan New Delhi News, 15 April 2024 : राम-राज्य फिर आएगा.. राम-राज्य फिर आएगा.. क्या ऐसा बोलने भर से ‘राम-राज्य’ साकार हो जाएगा? कदापि नहीं! उसके लिए कुछ प्रयत्नों की आवश्यकता होगी। हम राम को ऐसे बाहर से जानने की कोशिश करेंगे तो नहीं होगा। श्रीकृष्ण महाभारत में बहुत ही सुंदर कहते है- ‘जिस देश का राजा आत्मज्ञानी हो और प्रजा भी आत्मज्ञानी हो, वहाँ पर कभी भी दुःख आ ही नहीं सकता।’ अर्थात् राजा और प्रजा दोनों ने ईश्वर के तत्त्वस्वरूप को भीतर से ही जान लिया हो, वहाँ शांति अवश्य आ सकती है।
यजुर्वेद में हमारे महर्षियों ने सिद्धांत दिया है- जिस क्षण क्षत्रिय बल और ब्रह्म बल दोनों इकट्ठे होकर कार्य करते है केवल उसी क्षण राम-राज्य की स्थापना हो सकती है। तब वहाँ केवल सुख ही सुख एवं शांति ही शांति होगी। उन्होंने कहा अध्यात्म अर्थात् धर्म का प्रक्रियात्मक पहलू और क्षत्रिय अर्थात् राजनीति का समन्वय होना आवश्यक है। हमारे देश में एक बार नहीं कई बार राम-राज्य की स्थापना हुई, वैदिक काल में तो था ही उसके आगे आए चंद्रगुप्त मौर्य काल को भी हमारे देश का स्वर्णिम काल कहा जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य एक आम इंसान था। चारों तरफ घोर अनर्थ देख कौटिल्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के भीतर ब्रह्मज्ञान को आरोपित किया, परमात्मा-राम को तत्व रूप से जनाया। सिंहासन पर आरुढ़ किया, किन्तु जो शक्ति पीछे कार्य कर रही थी वह विलासिता या समृद्धि नहीं थीं अपितु धर्म की शक्ति थी। सम्राट अशोक के भीतर महात्मा बुद्ध के शिष्य ने इसी ब्रह्मज्ञान को पोषित किया और वह काल भी स्वर्णिम काल कहलाया। इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े है, अनेकों बार राम-राज्य की स्थापना हो चुकी है। परंतु हम राम तत्व को भीतर से जानना भूल जाते है। आज भी हम कोशिश कर रहे है। हम विज्ञान का सहारा लेते है। बहुत वैज्ञानिक तरक्की करने के बाद शायद शांति की स्थापना हो जाएगी। पर ऐसा नहीं हो पा रहा है। एक बार एल्बर्ट आइंस्टीन से किसी ने पूछा- आपके नाम पर विज्ञान के क्षेत्र में 1500 से अधिक खोजें है, इतने आविष्कार आपने किए है फिर भी दुनिया में इतनी अशांति है। शांति कैसे आ सकती है समाज में? आइंस्टीन- मुझे यह नहीं मालूम आविष्कारों से शांति आ रही है या नहीं। लेकिन मुझे यह जरूर मालूम है कि शांति चाहते हो तो अच्छे इंसान पैदा करो। यह भी मैं कहना चाहूँगा- विज्ञान के हाथों में अच्छे इंसान पैदा करना नहीं है। यह मैं नहीं जानता कैसे पैदा हो!
इसीलिए आज के परिवेश में हम राम-राज्य की परिकल्पना को साकार होते देखना चाहते है तो हमें क्या करना होगा? वही जो उस समय श्रीराम जी ने कहा- अध्यात्म पोषित बनो। हमारे समाज की हर इकाई प्रत्येक मनुष्य को शांति की स्थापना के लिए तत्व से जुड़ना होगा।
ईश्वर तत्त्व प्रकाश स्वरूप में प्रत्येक मनुष्य के भीतर ही उपस्थित है, ज़रूरत है उससे जुड़ने की, धार्मिक बनने की। ‘धर्म’ शब्द ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना। अर्थात् जब कोई भी व्यक्ति पूर्ण गुरु के सानिध्य में आत्मज्ञान को प्राप्त कर उस ईश्वर के तत्व रूप का साक्षात्कार कर लेता है तो वह सही मायने में धार्मिक बनता है, उसमें धर्म के दस लक्षण प्रकट हो जाते है। एक बार आत्मज्ञान प्राप्त करने पर ईश्वर उस व्यक्ति के साथ हर पल हर क्षण साथ-साथ चलता है। और कहते है ना कि व्यक्ति जिसके साथ-साथ हर समय होता है उसी के जैसा बन जाता है तो ईश्वर के साथ-साथ चलने पर मनुष्य भी देवतुल्य बन जाता है फिर वह व्यक्ति बुराई के बारे में विचार तक नहीं लाता और समस्त जग को अपना परिवार मानता है। इसीलिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति का राम तत्व को भीतर से ही जानना बहुत आवश्यक है। तभी हम एक आदर्श समाज की स्थापना कर सकते है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।