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    गठबंधन से कांग्रेस को कोई लाभ?

    (Mukhi Deepak Kathuria) www.bharatdarshannews.com

    गठबंधन से कांग्रेस को कोई लाभ?

    Bharat Darshan News, 11 April 2024 : नरेंद्र मोदी जब 2014 में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था| कांग्रेस उस समय सत्ता में थी और उसकी लोकसभा में 206 सीटें थी, लेकिन उसे सिर्फ 28.5 प्रतिशत वोट मिले थे|
    उसका यूपीए नाम से राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, जैसे 10 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से गठबंधन था| इस गठबंधन के लोकसभा में सिर्फ 262 सांसद थे, इसलिए वह सपा और बसपा के बाहरी समर्थन पर टिकी सरकार चला रही थी|

    यूपीए के गठबंधन सहयोगियों से सीट शेयरिंग के कारण कांग्रेस 2014 के चुनाव में कांग्रेस 464 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ 44 सीटें जीत पाई थीं| पांच साल बाद 2019 में कांग्रेस 421 सीटों पर चुनाव लड़कर 55 सीटें जीतीं| लेकिन 2024 में कांग्रेस 400 सीटों पर चुनाव लड़ने की हालत में भी नहीं है| आर्थिक तंगी का बहाना बना कर कांग्रेस ने लगभग 320 सीटें लड़ने का फैसला किया है, आज़ादी के बाद यह संख्या सबसे कम है| संभावित 320 उम्मीदवारों में से भी कांग्रेस अभी तक 237 उम्मीदवारों का ही एलान कर पाई है| दूसरी तरफ भाजपा 414 उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है और निश्चित ही साढ़े चार सौ के आसपास सीटों पर चुनाव लड़ेगी| भाजपा 2014 में 428 सीटों पर और 2019 में 436 सीटों पर चुनाव लड़ी थी|

    लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने इंडी एलायंस का गठन इसीलिए किया था, ताकि भाजपा के मुकाबले हर सीट पर एक उम्मीदवार खड़ा किया जा सके| लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनी| जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने आपस में तीन तीन सीटें बांट ली, जबकि पीडीपी को सीट शेयरिंग से बाहर कर दिया| बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस और वामपंथियों से सीट शेयरिंग से इंकार कर दिया| उत्तर प्रदेश में बसपा ने इंडी एलायंस में शामिल होने से मना कर दिया और राष्ट्रीय लोक दल आख़िरी वक्त में इंडी एलायंस छोड़ कर एनडीए में शामिल हो गया| हिन्दी पट्टी में भारतीय जनता पार्टी इतनी मजबूत है कि विरोधी दल मिल कर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते| हिन्दी पट्टी के राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने आज तक किसी दल से सीट शेयर नहीं की थी, वहां भी उसे छोटे दलों से सीट शेयरिंग करनी पड़ी है| राजस्थान में कांग्रेस ने नागौर आरएलपी के लिए, बांसवाडा डूंगरपुर बीएपी के लिए और सीकर सीट सीपीएम के लिए छोड़ दी है| अपना उम्मीदवार घोषित कर देने के बाद कांग्रेस ने बांसवाडा- डूंगरपुर सीट समझौते में बीएपी को दे दी, तो कांग्रेस के उम्मीदवार अरविन्द डामोर ने पर्चा वापस लेने से इनकार कर दिया, जिस पर कांग्रेस को उसे छह साल के लिए पार्टी से निकालना पड़ा है| इससे पहले राजसमन्द के उम्मीदवार सुदर्शन सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था| कई अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के कई उम्मीदवारों ने नाम घोषित हो जाने के बाद चुनाव लड़ने से मना कर दिया है| दिल्ली में चार और हरियाणा में एक सीट कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ी है, इसी तरह मध्यप्रदेश में एक सीट सपा के लिए छोड़ी है| पूरे उत्तर और मध्य भारत में पंजाबी भाषी पंजाब और कश्मीरी-डोगरी भाषी जम्मू कश्मीर को छोड़ दें, तो दिल्ली चंडीगढ़ समेत 10 हिन्दी भाषी राज्यों में 226 लोकसभा सीटें है| सत्रहवीं लोकसभा में इन दस राज्यों में भाजपा की अपनी 180 और सहयोगियों की 18 लोकसभा सीटें हैं| कांग्रेस के पास सिर्फ सात सीटें हैं| कांग्रेस ने यूपी, बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली में गठबंधन किया है| यूपी में सपा से, बिहार में राजद से, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा से, हरियाणा और दिल्ली में आम आदमी पार्टी से| इन पाँचों राज्यों में कांग्रेस पिछली बार तीन सीटें जीती थीं, इस बार वह 41 सीटों पर चुनाव लड़ रही है| पाँचों राज्यों में जिनके साथ कांग्रेस का गठबंधन हुआ है, वे पिछले चुनाव में सिर्फ छह सीटें जीते थे| गठबंधन वाले दलों का वोट बैंक भी जोड़ दिया जाए, तो कोई एक सीट भी ऐसी नहीं निकलती, जो इंडी गठबंधन भाजपा के सामने एक उम्मीदवार खड़ा करने के आधार पर जीत जाए| इन पांच में से कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां कांग्रेस को गठबंधन का कोई फायदा होगा| उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक के सहारे समाजवादी पार्टी जरुर अपनी पांच सीटें बचाने की कोशिश कर सकती है, लेकिन सपा का यादव वोट किसी भी सीट पर कांग्रेस को जीता पाएगा, ऐसी संभावना बहुत कम है| हिन्दी भाषी दस राज्यों के बाद अगर महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, उड़ीसा और बंगाल की बात करें तो इन पांच राज्यों की 139 सीटों में से कांग्रेस पिछली बार सिर्फ चार सीटें जीती थी| महाराष्ट्र में एक, उड़ीसा में एक और बंगाल में दो| चार सीटें महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस जीती थी| इन पाँचों राज्यों में भाजपा खुद 78 सीटें जीती थी, महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी शिवसेना 18 सीटें जीती थी| महाराष्ट्र में इस बार काफी उथल पुथल है, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक टुकड़ा एनडीए में चला गया है, और शिवसेना का एक टुकड़ा इंडी एलायंस के साथ है| कांग्रेस जो पिछली बार सिर्फ एक सीट जीती थी, इस बार उसके कई दिग्गज नेता अशोक चव्हाण, बाबा सिदिकी, मिलिंद देवड़ा, संजय निरुपम कांग्रेस छोड़कर एनडीए में शामिल हो चुके हैं| यानी इंडी गठबंधन की तीनों पार्टियां पहले से बहुत कमजोर हुई हैं| ऐसी स्थिति में एनडीए पिछली बार की 41 सीटें बरकरार रखने की कोशिश में कामयाब हो सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र में मोदी के चेहरे पर चुनाव है| दूसरी तरह राहुल, उद्धव और शरद पवार के चेहरे हैं| उड़ीसा और बंगाल में कांग्रेस इस बार पिछली बार जीती हुई तीन सीटें भी हार रही है| भाजपा ने इन दोनों राज्यों में 26 सीटें जीती थीं, भाजपा का आंकड़ा बढ़ कर कम से कम 30 होने जा रहा है| गुजरात में कांग्रेस ने पहली बार 26 में से दो सीटें इंडी एलायंस की सहयोगी आम आदमी पार्टी को दी हैं, खुद 24 पर लड़ रही है| गुजरात में भाजपा के भी दो उम्मीदवारों ने टिकट मिल जाने के बाद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया| भाजपा के एक उम्मीदवार केन्द्रीय मंत्री पुरषोतम रुपाला का जबर्दस्त विरोध हो रहा है| क्षत्रीय समाज उनकी राजकोट सीट से उम्मीदवार बदलने की मांग कर रहे हैं| लेकिन भाजपा में काफी गड़बड़ी के बावजूद नतीजा 2019 वाला ही होने के आसार हैं| पांचवें राज्य गोवा में कांग्रेस और भाजपा में आमने सामने की टक्कर है। जहां भी भाजपा कांग्रेस में आमने सामने की टक्कर होती है, वहां भाजपा का पलड़ा भारी रहता है| पूर्वोतर के आठ, पंजाब और जम्मू कश्मीर और केंद्र शासित लद्दाख मिला कर दस राज्यों की 44 लोकसभा सीटों में सत्रहवीं लोकसभा में भाजपा खुद 21 सीटों पर और सहयोगी 3 सीटों पर जीते थे| भाजपा असम में 9, जम्मू कश्मीर में तीन और पंजाब में दो सीटों के अलावा पूर्वोतर के सात राज्यों की 11 सीटों में से सात खुद और बाकी 3 सीटें भाजपा के सहयोगी जीते थे| भाजपा का आंकड़ा पंजाब और असम में भी बढ़ रहा है| कांग्रेस को पूर्वोतर में तीन और पंजाब में आठ सीटें मिलीं थीं| अब उतनी भी आती दिखाई नहीं देती क्योंकि आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस की सीट शेयरिंग नहीं हुई| जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस ने सीट शेयरिंग में जो तीन सीटें जम्मू, उधमपुर और लद्दाख कांग्रेस को दी हैं, उन तीनों ही सीटों पर कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला होना है, और तीनों ही सीटों पर भाजपा मजबूत है| उपरोक्त 15 राज्यों की 409 सीटों के बाद दक्षिण भारत के पांच राज्यों की 118 सीटों पर आते हैं, जिसके बारे में लंबे समय से कहा जा रहा था कि वहां भाजपा घुस नहीं सकती| जबकि कर्नाटक में दो दशक पहले ही भाजपा ने अपने पांच जमा लिए थे। कर्नाटक और तेलंगाना में भले ही कांग्रेस की सरकारें बन गई हैं, लेकिन इन दोनों राज्यों की 45 सीटों में से 29 सीटें भाजपा के पास है, जबकि कांग्रेस के पास 45 में से सिर्फ चार सीटें है। इसलिए यह कहना पूरी तरह गलत है कि दक्षिण में भाजपा कमजोर है| कम से कम इन दो राज्यों में तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस कहीं नहीं ठहरती हैं| इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद है, और इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सीटें कहीं बढ़ भी सकती हैं| बाकी तीन राज्य आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में भाजपा कमजोर रही है। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा इस बार मजबूत गठबंधन और जबर्दस्त सोशल इंजीनियरिंग से चुनाव लड़ रही है| भाजपा उम्मीद कर रही है कि इन तीनों ही राज्यों का शून्य इस बार टूट जाएगा| आंध्र और तमिलनाडु में भाजपा 4 से 6 तक सीटों की उम्मीद कर रही है| केरल में वैसे तो भाजपा चार सीटों पर कड़ी टक्कर दे रही है, लेकिन त्रिशूर सीट पर उसका चांस बन रहा है| पिछली बार भी इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार मलयाली एक्टर सुरेश गोपी को तीन लाख वोट मिले थे|

     

     

     

    (इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Bharat Darshan उत्तरदायी नहीं है।)