(Kiran Kathuria) www.bharatdarshannews.com
New Delhi News, 18 February 2020 : देश के 65 सेवा-निवृत्त नौकरशाहों ने एक सार्वजनिक अपील जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत में तानाशाही, असहिष्णुता और अल्पसंख्यक उत्पीड़न तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने संवैधानिक संस्थाओं से अपील की है कि वे इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाएं। देश के वरिष्ठ नौकरशाह, जिन्होंने कई-कई दशक तक सरकार चलाई है, उनके द्वारा ऐसा संयुक्त बयान जारी करना अपूर्व घटना है। ऐसा बयान तो आपातकाल के पहले या उसके दौरान भी शायद जारी नहीं हुआ। यह मोदी सरकार के लिए चिंता का चाहे न हो लेकिन चिंतन का विषय जरुर है। इस बयान में इन नौकरशाहों ने मुसलमानों पर हो रहे हमले, विश्वविद्यालयों में बढ़ रही गलाघोंटू वृत्तियां और कानून के दुरुपयोग पर ध्यान दिलाया है। उन्होंने गौरक्षकों और रोमियो ब्रिगेड की बात भी कही है। उन्होंने एनडीटीवी के मालिक पर डाले गए सीबीआई छापे का जिक्र नहीं किया है लेकिन आजकल खबरपालिका भी जिस तरह साष्टांग दंडवत की मुद्रा में है, उसका भी जिक्र किया जा सकता था। मैंने उसे अभी कुछ दिन पहले ‘आपात्काल का कुआरंभ’ कहा था। उस पर बुजुर्ग पत्रकारों ने जमकर हमला बोला था। लेकिन नौकरशाहों का यह बयान मुझे जरुरत से ज्यादा रंगा हुआ दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि किसी ने बयान तैयार किया और लोगों ने बस दस्तखत कर दिए। यदि उनका भय सच्चा होता तो भला, वे ऐसा बयान क्या जारी कर सकते थे ? हमारे नौकरशाह तो बेहतर डरपोक प्राणी होते हैं। इसके बावजूद वे बोल पड़े, इससे साबित होता है कि देश में अभी डरने की कोई बात नहीं है। इसमें शक नहीं है कि तथाकथित गोरक्षकों और रोमियो बिग्रेडियरों के कारण सरकार को बदनाम किया जा रहा है लेकिन क्या प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया ने इन स्वयंभू लोगों का जरा-सा भी समर्थन किया? जहां तक हिंदुत्व के नाम पर मूर्खतापूर्ण कारनामों का प्रश्न है, पिछली सरकार के दौरान वे कहीं ज्यादा हुए हैं। इसमें शक नहीं कि वर्तमान सरकार और भाजपा में आजकल ‘एकचालकानुवर्तित्व’ की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है याने एकाधिकार, एकायाम, एकाकी नेता की प्रवृत्ति। लेकिन इसका खामियाजा भाजपा और संघ भुगतेंगे। जहां तक देश का प्रश्न है, विरोधी नेता और दल अधमरे हो चुके हैं। उनकी विश्वसनीयता दरक चुकी है। उन्हें विरोध करने और बोलने की पूरी आजादी है लेकिन वे हकला रहे हैं। सारे सिक्के खोटे सिद्ध हो रहे हैं। इन खोटों के बीच जो चल रहा है, वह सिक्का भी इसीलिए चल रहा है कि वह बड़ा है। छोटों के बीच बड़ा है। आम लोग बड़े को ही अच्छा समझ बैठते हैं। ऐसे में यदि हमारे कुछ नौकरशाह और बुद्धिजीवी थोड़ी-सी हिम्मत दिखाते हैं और मुंह खोलते हैं तो उसका स्वागत ही होना चाहिए।