(Kiran Kathuria) www.bharatdarshannews.com
Faridabad News, 29 October 2019 : हरियाणा की राजनीति के हजार रंग हैं, जब कोई पार्टी सत्ता में आने के लिए पूरी तरह आश्वस्त हो, तब लोग उसे जोर का झटका धीरे से देते हैं. सपनों को धराशायी करने के मामले में हरियाणवियों का कोई जवाब नहीं है. इस बार भी हरियाणा में ऐसा ही हुआ है । लोकसभा चुनावों में सभी दस सीटें जीतने के बाद जब भाजपा विधानसभा चुनावों में 75 से ज्यादा सीटें जीतने का जोर-शोर से दावा कर रही थी, तब लोगों ने पार्टी को ऐसा झटका दिया कि बहुमत हासिल करने के लिए भी उसे उधार के पांच विधायकों की जरूरत पड़ गई। दूसरी तरफ कांग्रेस जब अपनी इज्जत बचाने के लिए जूझ रही थी, लोगों ने पार्टी को 31 सीटें दे कर पार्टी नेताओं को हैरान कर दिया । किसी ने यह भी नहीं सोचा था कि तीसरे स्थान पर रहने वाली जननायक जनता पार्टी (जजपा) की 'चाबी' से ही विधानसभा का दरवाजा खुलेगा और पार्टी सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला सबसे छोटी उम्र में अचानक उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पा लेंगे। हरियाणा में मनोहर लाल ऐसे पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें लगातार दूसरी बार इस कुर्सी पर बैठने का मौका मिला है । इससे पहले यह रिकॉर्ड बंसीलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम दर्ज है। कांग्रेस पार्टी ने 1968 में पहली बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाया था, फिर 1972 में हुए चुनावों में उन्हें लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ था । इसके बाद कांग्रेस ने 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी और फिर 2009 में उन्होंने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद हासिल किया । अब यह रिकॉर्ड मनोहर लाल के नाम दर्ज हो गया है. वर्ष 2014 में वे पहली बार भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री बने और अब 2019 में भी उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली है ।
सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते दुष्यंत
जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने अपने गठन के ग्यारह महीने के भीतर ही विधानसभा चुनावों में 10 सीटें जीत लीं और भाजपा के साथ गठबंधन बनाते हुए दुष्यंत चौटाला ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली । दुष्यंत बड़ी किस्मत वाले हैं । 25 साल के होते ही वे हिसार से सांसद चुन लिए गए थे और अब 31 साल की उम्र में राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बन गए । जजपा की इस कामयाबी को देखते हुए राज्य के लोगों ने दुष्यंत को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखना शुरु कर दिया है । इसमें कोई शक नहीं है कि दुष्यंत ने बहुत जल्दी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ी हैं । अगर उन्होंने ठीक से पत्ते खेले तो उन्हें सत्ता की शीर्ष मणि जाने वाली कुर्सी तक पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगेगी ।
भाग्यशाली है देवीलाल परिवार
राजनीति में पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल का परिवार सबसे ज्यादा भाग्यशाली है. इस परिवार से चार लोग चुन कर विधानसभा में पहुंचे हैं । देवीलाल के मंझले बेटे रणजीत सिंह बतौर आज़ाद उम्मीदवार रानियां, पोते अभय सिंह चौटाला इनेलो से ऐलनाबाद, पोते अजय सिंह चौटाला की पत्नी नैना चौटाला जजपा से बाढड़ा और पड़पोते दुष्यंत चौटाला भी जजपा के टिकट पर उचनाकलां क्षेत्र से चुनाव जीते हैं । इसके अलावा देवीलाल के सबसे छोटे बेटे स्व. जगदीश के बेटे आदित्य देवीलाल ने भाजपा के टिकट पर डबवाली से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए । आदित्य को मात देने वाले भी देवीलाल के नजदीकी डॉ. केवी सिंह के बेटे अमित सिहाग हैं, जो कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार मैदान में उतरे थे ।
भाजपा का गलत आकलन
सत्तारूढ़ पार्टी का आकलन भी कई बार गलत साबित हो जाता है। भाजपा ने पुंडरी से रणधीर गोलन, महम से बलराज कुंडू, दादरी से सोमवीर सांगवान, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और पृथला से नयनपाल रावत को टिकट नहीं दिया। भाजपा ने इन्हें जिताऊ उम्मीदवार नहीं माना. टिकट नहीं मिलने पर यह सब बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे और जीते भी गए। उधर, भाजपा जब भाजपा बहुमत से पांच कदम दूर रह गई तो इन्हें अपनी तरफ आने का बुलावा भेज दिया. पुरानी बातों को भुलाते हुए यह पांचों आज़ाद विधायक भी भाजपा से गलबहियां करने को फ़ौरन तैयार हो गए. एक तरह से इन्होने एक बार फिर उस कहावत को सही सिद्ध कर दिया कि राजनीति में न कोई किसी का स्थाई दोस्त है और न स्थाई दुश्मन। जो भी रिश्ते हैं बनते हैं, जरूरत के हिसाब से बनते हैं।